Mukesh Chandrakar murder case

मुकेश चंद्राकर का दुखद मर्डर केस: एक बहादुर पत्रकार की हत्या(Mukesh Chandrakar murder case)

 

छत्तीसगढ़ के बस्तर से एक बहादुर पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। उनकी अचानक मौत ने यह सवाल खड़ा किया कि पत्रकारों को कितना खतरा उठाना पड़ता है, खासकर जब वे भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते हैं। मुकेश चंद्राकर एक ऐसा पत्रकार थे जिन्होंने बस्तर और आसपास के क्षेत्रों में होने वाली भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों के उल्लंघन पर अपनी रिपोर्टिंग की। उनका मर्डर न केवल भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत लोगों के लिए कितने खतरनाक हालात हैं।

1.मकेश चंद्राकर का जीवन

मुकेश चंद्राकर का जन्म और पालन-पोषण छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में हुआ था, जो नक्सल प्रभावित और हिंसा से ग्रस्त क्षेत्र है। उनका बचपन कई संघर्षों से भरा हुआ था। उनके पिता का निधन बहुत कम उम्र में हो गया, और उनकी माँ ने अकेले ही उनका पालन-पोषण किया। मुकेश को पत्रकारिता में रुचि उनके बड़े भाई युकेश से मिली, जो खुद एक फ्रीलांस पत्रकार थे।

मुकेश ने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत विभिन्न मीडिया चैनलों से की, जिनमें सहारा समय, नेटवर्क18 और NDTV शामिल थे। हालांकि, उनकी पहचान “बस्तर जंक्शन” नामक यूट्यूब चैनल के माध्यम से ज्यादा हुई, जो उन्होंने शुरू किया था। इस चैनल पर मुकेश ने बस्तर और आसपास के क्षेत्र की समस्याओं को उजागर किया, जिसमें भ्रष्टाचार, सार्वजनिक कामों में गड़बड़ी और स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता से दिखाया।

2.मुकेश चंद्राकर की हत्या

1 जनवरी 2025 को मुकेश अचानक लापता हो गए। उनकी अंतिम रिपोर्ट भ्रष्टाचार और स्थानीय ठेकेदारों द्वारा किए गए सड़कों के निर्माण में अनियमितताओं पर आधारित थी। कुछ दिनों बाद उनकी लाश बस्तर जिले में एक ठेकेदार की संपत्ति पर स्थित एक सेप्टिक टैंक में मिली। यह घटना न केवल चौंकाने वाली थी, बल्कि यह दिखाती है कि पत्रकारिता की कीमत क्या हो सकती है, खासकर जब कोई सत्ता और भ्रष्टाचार की पोल खोलने की कोशिश करता है।जांच के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि मुकेश की हत्या उनकी रिपोर्टिंग के कारण हुई थी। उनकी रिपोर्टों ने कुछ ठेकेदारों की भ्रष्टाचार की सच्चाई को उजागर किया था, और यही कारण था कि उनकी हत्या कर दी गई। माना जा रहा था कि ठेकेदार और उनके सहयोगी मुकेश को चुप कराने के लिए इस अपराध में शामिल थे।

3.मुकेश की हत्या का प्रभाव

मुकेश चंद्राकर की हत्या ने पत्रकारिता समुदाय में गहरी चिंता और आक्रोश को जन्म दिया। यह घटना यह दिखाती है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में पत्रकारों को न केवल अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ती है, बल्कि वे प्रत्यक्ष रूप से धमकियों, हमलों और हत्या का शिकार भी हो सकते हैं। मुकेश का मामला एक गंभीर सवाल खड़ा करता है—क्या पत्रकारों को बिना किसी डर के अपने काम करने का अधिकार है?उनकी हत्या ने प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर गंभीर चर्चा शुरू की है। भारत में पत्रकारों को सुरक्षित रखने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि वे बिना किसी डर के अपनी रिपोर्टिंग जारी रख सकें। मुकेश का मामला प्रेस की स्वतंत्रता की सुरक्षा के महत्व को और भी स्पष्ट करता है।4.प्रेस की स्वतंत्रता और चुनौतियाँ

मुकेश चंद्राकर की हत्या ने यह दर्शाया कि पत्रकारों के लिए, विशेष रूप से ग्रामीण और संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में, काम करना कितना खतरनाक हो सकता है। भारत में छोटे शहरों और गांवों में पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों को अक्सर हिंसा, धमकी और शारीरिक हमलों का सामना करना पड़ता है। मुकेश का मामला इस बात का प्रमाण है कि कैसे स्थानीय भ्रष्टाचार, ठेकेदारों, और सरकार के समर्थकों के साथ पत्रकारों का सामना करना पड़ता है, जो सच्चाई को छिपाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।

5.मुकेश चंद्राकर की याद में

मुकेश चंद्राकर की हत्या ने उनके जीवन और काम की अहमियत को और भी बढ़ा दिया है। उनका जीवन, उनका संघर्ष और उनके काम ने उन्हें एक बहादुर और समर्पित पत्रकार के रूप में स्थापित किया। उनकी हत्या के बावजूद, उनका कार्य और उनके योगदान जीवित रहेगा। उन्होंने हमेशा अपनी रिपोर्टिंग के जरिए समाज की आवाज को उठाया, और उनकी यही विशेषता उन्हें सदियों तक याद रखी जाएगी।

निष्कर्ष

मुकेश चंद्राकर का मर्डर एक दुखद घटना है, जो न केवल उनके परिवार और पत्रकारिता जगत के लिए एक बड़ी क्षति है, बल्कि यह पूरे देश के लिए एक चेतावनी है। उनकी मौत ने हमें यह याद दिलाया है कि पत्रकारिता न केवल एक पेशा है, बल्कि यह समाज में बदलाव लाने का एक तरीका है। हम सभी को मुकेश की तरह साहसिक पत्रकारों का समर्थन करना चाहिए और उनके द्वारा किए गए कार्यों को आगे बढ़ाना चाहिए। मुकेश की हत्या को कभी बेकार नहीं जाने देना चाहिए, और हमें प्रेस की स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए निरंतर संघर्ष करना चाहिए।

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